दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥ तदा एव काश्चन परीक्षाः समाप्ताः भवन्ति। भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ त्राहि त्राहि मैं https://shivchalisas.com